पुण्यतिथि : 50 साल पहले आज ही के दिन कैसे हुई बाबा नीम करोली की मृत्यु

हाइलाइट्स

11 सितंबर 1973 को वृंदावन में हुई थी बाबा नीम करोली की मृत्यु
बाबा के भक्तों में स्टीव जाब्स, मार्क जुकरबर्ग और जूलिया राबर्ट्स शामिल

मशहूर नीम करोली बाबा देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं. दिनोंदिन उनके भक्तों और मानने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. नैनीताल के करीब स्थित कैंची धाम में नियमित तौर पर श्रृद्धालु बाबा के मंदिर में उनके दर्शन के लिए आते हैं. 50 साल पहले 11 सितंबर के ही दिन बाबा नीम करोली का निधन हो गया था. हम जानेंगे कि उनकी मृत्यु कैसे हुई.

बाबा नीम करोली ऐसे संत के तौर पर याद किए जाते हैं, जो सादा जीवन जीते थे और लोगों को अच्छे काम के साथ सादा जीवन जीने के लिए प्रेरित करते थे. उनके जीवन और कामों को लेकर ना जाने कितनी कहानियां हैं. उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि बाबा ने उनके जीवन को कैसे बदल दिया या किस तरह बाबा ने उनको संकट में राह दिखाई.

बाबा के भक्तों में एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स भी थे. जो महीने भर से ज्यादा उनके सानिध्य में रहे. इसी तरह विदेश की कई और शख्सियतें उन्हें दिव्य पुरुष मानती थीं. बाबा ने अपने प्राण वृंदावन में त्यागे, जहां उनका मंदिर है, यहां भी लोग दर्शन के लिए आते हैं. क्या आपको मालूम है कि बाबा की मृत्यु कैसे हुई.

वृंदावन स्थित बाबा नीम करोली का मंदिर, जहां उनका समाधिस्थल भी है. (विकीकामंस)

कब और कहां हुई मृत्यु 
11 सितंबर 1973 की रात बाबा अपने वृंदावन स्थित आश्रम में थे. अचानक उनकी तबीयत खराब होने लगी. उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया. जहां डॉक्टरों ने उन्हें ऑक्सीजन मास्क लगाया लेकिन बाबा ने इसे लगाने से मना कर दिया. उन्होंने वहां मौजूद भक्तों से कहा अब मेरे जाने का समय आ गया है. उन्होंने तुलसी और गंगाजल को ग्रहण कर रात के करीब 1:15 पर अपना शरीर त्याग दिया. हालांकि उनकी मृत्यु का कारण मधुमेह कोमा बताया जाता है.

नीम करोली बाबा का जन्म करीब 1900 में उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में हुआ था. बताया जाता है कि वहीं 17 साल की उम्र में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. उन्होंने घर छोड़ अपना जीवन हनुमान भक्ति में लगा दिया. बाबा नीम करोली का कैंची धाम नैनीताल में भुवाली से 07 किमी की दूरी पर है. यहां हर साल 15 जून को वार्षिक समारोह मानाया जाता है. उस दिन बाबा के भक्तों की भारी भीड़ जुटती है.

बाबा नीम करोली का नैनीताल के पास कैंची धाम, जहां नियमित तौर पर भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते रहते हैं. (wiki commons)

क्या था असली नाम
नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था. उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था. 11 वर्ष की उम्र में ही बाबा का विवाह हो गया था.
1958 में बाबा ने अपने घर छोड़ दिया. पूरे उत्तर भारत में वह साधुओं की तरह घूमने लगे. तब वह लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा जैसे कई नामों से जाने जाते थे. उन्होंने गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या की तो वहां लोग उन्हें तलईया बाबा के नाम से पुकारने लगे.

कैसे कहे जाने लगे बाबा नीम करोली
एक बार बाबा फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे. जब टिकट चेकर आया तो उनके पास टिकट नहीं था. तब उन्हें अगले स्टेशन ‘नीब करोली’ में ट्रेन से उतार दिया गया. बाबा थोड़ी दूर पर अपना चिपटा धरती में गाड़कर बैठ गए. गार्ड ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई लेकिन ट्रेन एक इंच भी आगे नहीं हिली. बाद में बाबा से माफी मांगने के बाद उन्हें ससम्मान ट्रेन में बिठाया गया. उनके बैठते ही ट्रेन चल पड़ी. तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया.

कब आए कैंची धाम पहली बार
उत्तराखंड के नैनीताल के पास कैंची धाम में बाबा नीम करौली 1961 में पहली बार यहां आए. उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर यहां आश्रम बनाने का विचार किया. आश्रम की स्थापना 1964 में की गई.

भक्तों में स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग
नीम करोली बाबा के भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स का नाम लिया जाता है. कहा जाता है कि इस धाम की यात्रा करके उनका जीवन बदल गया.

बाबा पर विदेशी भक्त ने लिखी किताब
रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ नामक एक किताब लिखी, इसी में ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र है. बाबा हमेशा कंबल ही ओढ़ा करते थे. आज भी लोग जब उनके मंदिर जाते हैं तो उन्हें कंबल भेंट करते हैं.

दो बेटे और एक बेटी थी उनकी
बाबा नीम करौली के दो पुत्र और एक पुत्री हैं. बड़े बेटे अनेक सिंह परिवार के साथ भोपाल में रहते हैं, छोटे बेटे धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर के पद पर थे, जिनका कुछ समय पहले निधन हो गया.

Tags: Sadhu Sant, Vrindavan

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