नैनितालच्या या मंदिरात होते मातेची पूजा, डोळ्यांचे आजार फक्त दर्शनाने बरे होतात!

तनुज पांडेय/नैनीताल. उत्तराखंड के नैनीताल में झील के उत्तरी छोर में स्थित मां नयना देवी का मंदिर पूरे देश में अपना खास महत्व रखता है. हर साल लाखों की संख्या में देश के विभिन्न हिस्से से लोग माता के दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि जब भगवान शिव माता सती की मृत देह को लेकर कैलाश की तरफ जा रहे थे, तो अलग-अलग स्थान पर माता के शरीर के अंग गिरे. जहां-जहां माता के अंग गिरे, उन जगहों में माता के शक्तिपीठ स्थापित हो गए. माता सती का बायां नेत्र इस जगह पर गिरा था, वहां आज नैनीताल (मंदिर स्थल) है. मंदिर के भीतर मां दो नेत्र रूप में विराजमान हैं. साथ ही, मां की मूर्ति के साथ-साथ भगवान गणेश और मां काली भी मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान हैं.

मां नयना देवी मंदिर के पुजारी नवीन चंद्र तिवारी बताते हैं कि मां के दर्शन मात्र से नेत्र रोग दूर होते हैं. साथ ही, भक्तों की सभी मनोकामनाएं यहां पूरी होती हैं. यही वजह है कि हर वर्ष देश के विभिन्न कोने से लाखों श्रद्धालु मां नयना देवी मंदिर में दर्शन करने आते हैं. उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले एक महिला अपनी बेटी की आंखों से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए नेपाल से नैनीताल के माल रोड में स्थित सीतापुर आई हॉस्पिटल आई थी. उसकी बेटी की आंखों की रोशनी बेहद कम थी. नैनीताल आने पर महिला को पता चला कि अस्पताल के पास में ही मां नयना देवी का मंदिर है, जहां दर्शन मात्र से आंखों से संबंधित सभी रोग खत्म हो जाते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि महिला अपनी बच्ची के साथ मां के दर्शन के लिए पहुंची और यहां आकर मन्नत मांगी. मां के दर्शन के बाद जब महिला दोबारा अस्पताल पहुंची, तो डॉक्टर ने बच्ची की आंखों की जांच की और पाया कि उसकी आंखों की रोशनी बिल्कुल ठीक है. इस चमत्कार के बाद से मां नयना देवी के प्रति लोगों की आस्था और बढ़ गई.

हर साल आयोजित होता है मां नंदा देवी महोत्सव

हर साल अगस्त और सितंबर के महीने में नंदा अष्टमी के दिन नगर में मां नयना देवी महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो आठ दिन तक चलता है. हर दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. नंदा अष्टमी के दिन प्रातः काल शुभ मुहूर्त में माता नंदा सुनंदा की मूर्ति का डोला भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर प्रांगण में रखा जाता है. तीन से पांच दिन के बाद मां नयना देवी के डोले को पूरे नगर में घुमाया जाता है और रात्रि में नैनी झील में विसर्जित कर दिया जाता है. वहीं, पास ही स्थित मैदान में मेला लगता है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. नैनीताल आने वाले पर्यटक भी मेले का लुत्फ उठाते हैं.

(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. न्यूज 18 किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है)

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