हाइलाइट्स
पीएम ने इस बारे में सदस्य देशों को जून में भेजा था अनुरोध पत्र
जी20 के सदस्य देशों की संख्या अब 21 हो जाएगी
इसमें 19 देशों के अलावा यूरोपीय और अफ्रीकन यूनियन शामिल
जी-20 सम्मेलन के सफल आयोजन के साथ ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत (India) ने अपनी वैश्विक साख में और इजाफा कर लिया है. जी20 लीडर्स घोषणा पत्र पर सदस्य देशों की सहमति बनाना भारत की बड़ी सफलता माना जा रहा है. इस घोषणा पत्र में मजबूत, संतुलित और समावेशी विकास में तेजी लाने, डिजिटल-सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के माध्यम से वित्तीय समावेशन और वैश्विक चुनौतियों से निपटने व समाज के सभी क्षेत्रों के रूप में योगदान के लिए नीति निर्माताओं के रूप में महिलाओं की सार्थक भागीदारी को बढ़ावा देने जैसी अहम बातों का जिक्र है. भारत के प्रस्ताव पर अफ्रीकन यूनियन (African Union) को स्थायी सदस्य बनाने पर भी सहमति बन गई है.
अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल कराना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का ‘मास्टर स्ट्रोक’ माना जा रहा है. पीएम ने इस दिशा में पहल करते हुए जी-20 के सदस्य देशों के नेताओं को जून में ही अनुरोध पत्र भेजा था. यूरोपियन यूनियन की तर्ज पर अब अफ्रीका यूनियन भी जी-20 का स्थायी सदस्य होगा और इस मंच के मार्फत अपनी बात को दुनिया के समक्ष रख सकेगा. जी-20 में अब तक 19 देश और यूरोपियन यूनियन शामिल था, अफ्रीकन यूनियन की एंट्री से यह संख्या 21 हो जाएगी.
बाली समिट में PM ने किया था वादा : अफ्रीकन यूनियन के जी-20 का सदस्य बनने पर विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने बताया कि पीएम मोदी ने अपना वादा पूरा किया.जयशंकर के अनुसार,’पिछले साल बाली समिट के दौरान तत्कालीन अफ्रीकी यूनियन के अध्यक्ष और सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी सॉल इंडोनेशिया के राष्ट्रपति और पीएम मोदी के पास आए थे.उन्होंने जी-20 की सदस्यता को लेकर अपनी बात रखी थी. उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष को आश्वासन दिया था कि भारत की अध्यक्षता में होने वाले जी-20 सम्मेलन में यह निश्चित रूप से किया जाएगा.”
आइए जानते हैं कि अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल करना क्यों है अहम और इससे भारत को क्या फायदा होगा.
55 देशों का संगठन, कुल GDP 2.99 ट्रिलियन डॉलर
अफ्रीकन यूनियन के सदस्य देशों की संख्या 55 है और इनमें 1.3 अरब जनसंख्या निवास करती है. इसके स्थायी सदस्य बनने से 55 देशों को फायदा मिलेगा. अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल करने की मांग लंबे समय से हो रही थी. 2010 से ही अफ्रीकन यूनियन को G-20 समिट में आमंत्रित किया जाता रहा है.अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, 55 अफ्रीकी देशों की कंबाइंड GDP (Gross domestic product) 2.99 ट्रिलियन डॉलर है, इस हिसाब से ये दुनिया की आठवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है.नाइजीरिया 477.38 बिलियन डॉलर, इजिप्ट 475.23 बिलियन डॉलर और दक्षिण अफ्रीका 405.71 बिलियन डॉलर के साथ GDP के मामले में अफ्रीकन यूनियन के तीन शीर्ष देश हैं.
26 मई 2001 को हुई थी स्थापना
अफ्रीकन यूनियन की स्थापना 26 मई 2001 को अदीस अबाबा (इथियोपिया) में हुई थी और 9 जुलाई 2002 से यह अस्तित्व में आया.इसने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनिटी की जगह ली थी जिसके गठन की घोषणा 1963 में 32 अफ्रीकी देशों के प्रमुखों ने इथोपिया के अदिस अबाबा में की थी.अफ्रीकन यूनियन का उद्देश्य देश के आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को चर्चा करना और उनका स्थायी समाधान निकालना है.
अफ्रीकी देशों में दुनिया का 30 फीसदी खनिज भंडार
अफ्रीकी देश प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हैं. अफ्रीका में विश्व के खनिज भंडार का लगभग 30%,प्राकृतिक गैस की करीब 8% और वैश्विक तेल भंडार का 12% हिस्सा है. इस महाद्वीप में दुनिया का 40% सोना और 9% तक क्रोमियम व प्लेटिनम है. सोने के उत्पादन के मामले में अफ्रीकी देशों में शीर्ष पर अल्जीरिया है जबकि दक्षिण अफ़्रीका दूसरे स्थान पर है. दुनिया में कोबाल्ट,हीरा,प्लेटिनम और यूरेनियम का सबसे बड़ा भंडार अफ्रीका में है.अफ्रीका का एक देश कांगो में ही दुनिया के कुल कोबाल्ट का आधा हिस्सा मौजूद है. लीथियम आयन की बैटरियों में कोबाल्ड बेहद जरूरी तत्व है. ऐसे समय जब कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दुनियाभर में इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर दिया जाता है, अफ्रीकी देश जी-20 के लिए अहम बन जाते हैं.
खाद्य संकट दूर करने में अफ्रीकी देशों का होगा अहम रोल!
ऐसे समय जब शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की आपाधापी में भारत सहित दुनियाभर में कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है, खास संकट को दूर करने में अफ्रीकी देशों का रोल काफी महत्वपूर्ण है.जानकारी के अनुसार, दुनिया की 60 प्रतिशत कृषि योग्य और बिना खेती वाली भूमि (परती जमीन) अफ्रीका में है. ऐसे समय जब दुनिया क अन्य हिस्सों में कृषि योग्य भूमि की कमी हो रही है, अफ्रीका की इस भूमि को ‘आबाद’ करके कृषि कार्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे खाद्य संकट हल करने में मदद मिलेगी.
जी-20 के सदस्य देशों से अच्छे कारोबारी-सामरिक रिश्ते
अफ्रीकी देशों के चीन, रूस और भारत जैसे जी-20 के सदस्य देशों के साथ मजबूत व्यापारिक रिश्ते हैं.अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार चीन है जबकि रूस, अफ्रीका का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है. खाड़ी देशों ने भीअफ्रीका में सबसे काफी निवेश किया है, वहीं तुर्किए का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा सोमालिया में है. इस्राइल और ईरान भी अफ्रीका में अपना पहुंच बढ़ा रहे हैं.
भारत के लिए अफ्रीकी देश कितने महत्वपूर्ण?
भारत के लिहाज से बात करें तो अफ्रीका के 55 में से 43 देशों के साथ उसके राजनयिक संबंध हैं, ऐसे में अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल करने के ‘दांव’ के जरिये उसने अपने हितों को भी साधा है. भारत और अफ्रीका के बीच लगभग 90 अरब डॉलर का कारोबार होता है.विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने इसी साल जून में उम्मीद जताई थी कि भारत-अफ्रीका व्यापार जल्द ही 100 अरब डॉलर को पार कर जाएगा.उन्होंने बताया था कि अफ्रीका में शीर्ष पांच बड़े निवेशकों में से भारत एक है.अफ्रीकी देशों में भारत अब करीब 74 अरब डॉलर का निवेश भी कर चुका है.भारत मुख्य रूप से ईंधन, प्राकृतिक और बनावटी मोती, महंगे पत्थर और रसायनिक खाद अफ्रीकी देशों से आयात करता है.भारत अपनी जरूरत का लगभग 18 फीसदी कच्चा तेल और करीब 20 फीसदी कोयला अफ्रीकी देशों से खरीदता है.मोरक्को, ट्यूनिशिया और सेनेगल जैसे अफ्रीकी देशों से भारत फर्टिलाइजर आयात करता है.
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Tags: G-20 Summit, G20 Summit, Pm narendra modi
FIRST PUBLISHED : September 11, 2023, 13:53 IST